Top 10 Holi Chautal Lyrics, होली चौताल लिरिक्स (होली चौताल बारहमासा)

SHARE:

Top 10 Holi Chautal Lyrics, होली चौताल लिरिक्स व होली बारहमासा

Holi Chautal Lyrics, होली चौताल लिरिक्स, होली चौताल बारहमासा

यहाँ पर कुछ पारंपरिक होली चौताल व होली बारहमासा गीत लिखा हुआ दिया जा रहा है –


यह चरन सरोज तिहारे अमंगल हारे होली चौताल

यह चरन सरोज तिहारे,अमंगल हारे ||

अरे हे दशरथ के सुवन दयानिधि,दीनबन्धु हितकारे ||

कर धनु-सर सिर मुकुट बिराजत,

कलंगी बहुभाँति सँवारे ||अमंगल हारे ||

अरे कमल-नयन मुख-बयन सुधा-सम,

केसर तिलक लिलारे ||

कंठा-कंठ माल-मनि सोभित,

श्रुति-कुण्डल की द्युति न्यारे ||अमंगल हारे ||

अरे कल्प बिरिछ तर कनक सिंघासन,

तेहि पर आसन डारे ||

बाम भाग सीता सुठि सोभित,

करिके नव-सात सिंगारे ||अमंगल हारे ||

अरे भरत लखन रिपुदमन खडे़ धरि,

चँवर छत्र तरवारे ||

द्विज छोटकुन पंखा भल फेरत,

मारुत-सुत प्रान अधारे ||अमंगल हारे ||


धनि-धनि ए सिया रउरी भाग राम वर पायो होली चौताल

धनि-धनि ए सिया रउरी भाग, राम वर पायो ||

लिखि लिखि चिठिया नारद मुनि भेजे, विश्वामित्र पिठायो ||

साजि बरात चले राजा दशरथ,

जनकपुरी चलि आयो || राम वर पायो ||

वनविरदा से बांस मंगायो, आनन माड़ो छवायो ||

कंचन कलस धरतऽ बेदिअन परऽ,

जहाँ मानिक दीप जराए, राम वर पाए ||

भए व्याह देव सब हरषत, सखि सब मंगल गाए,

राजा दशरथ द्रव्य लुटाए, राम वर पाए ||

धनि -धनि ए सिया रउरी भाग || राम वर पायो ||


शुभ कातिक सिर विचारी – होली बारहमासा चौताल

शुभ कातिक सिर विचारी, तजो वनवारी ||

जेठ मास तन तप्त अंग भावे नहीं सारी || तजो वनवारी ||

बाढ़े विरह अषाढ़ देत अद्रा झंकारी || तजो वनवारी ||

सावन सेज भयावन लागतऽ,

पिरतम बिनु बुन्द कटारी || तजो वनवारी ||

भादो गगन गंभीर पीर अति हृदय मंझारी,

करि के क्वार करार सौत संग फंसे मुरारी || तजो वनवारी ||

कातिव रास रचे मनमोहन,

द्विज पाव में पायल भारी || तजो वनवारी ||

अगहन अपित अनेक विकल वृषभानु दुलारी,

पूस लगे तन जाड़ देत कुबजा को गारी || तजो वनवारी ||

आवत माघ बसंत जनावत,

झूमर चौतार झमारी || तजो वनवारी ||

फागुन उड़त गुलाब अर्गला कुमकुम जारी,

नहिं भावत बिनु कंत चैत विरहा जल जारी,

दिन छुटकन वैसाख जनावत,

ऐसे काम न करहु विहारी || तजो वनवारी ||


सखी फूले बसन्त के फूल बिरह तनु जारे होली चौताल

सखी फूले बसन्त के फूल बिरह तनु जारे ||
चम्पा फुले गुलाब फुले सुरुजमुखी कचनारे ||

उड़हुल बेलि चमेलि फुलानेहो,
सर कमल फुले रतनारे ||१ ||

जुही मालती कंदइल दाड़िम गोंदा फुले हजारे ||
लाल अनार कुसुमकलियनहो सखी सिरीस फुले अतिबारे ||२ ||

बाग पियाबिन फूल फुलाने मारत जान हमारे ||

जो पीया होत हमारे संगमेंहो,
सखि करत बिथा सब न्यारे ||३ ||

कोइल सब्द करत बगियामें सुनि सुनि फटत दरारे ||

लालबिहारी कहत समुझाइ हो,
गोरी तुमरो बलम अतिबारे ||४ ||


पपीहा बन बैन सुनावे निंद नहीं आवे होली चौताल

पपीहा बन बैन सुनावे निंद नहीं आवे ||

आधीरात भई जब सखिया कामबिरह सन्तावे ||

पियबिन चैन मनहि नहिं आवत, सखि जोबन जोर जनावे ||१ ||

फागुन मस्त महीना सजनी पियबिन मोहिं न भावे ||

पवन झकोरत लुह जनु लागत, गोरी बैठी तहां पछितावे ||२ ||

सब सखि मिलकर फाग रचतहैं ||ढोल मृदंग बजावे ||

हाथ अबीर कनक पिचकारी हो, सखि देखत मन दुख पावे ||३ ||
हे बिधना मैं काहबिगाड़ो जनम अकारथ जावे ||

लालबिहारी कहत समुझाइ हो, गोरी धीरजमें सुख पावे ||४ ||


सखि उठिकर करहु सिंगार बसन्त जाये होली चौताल

सखि उठिकर करहु सिंगार बसन्त जाये ||

बाजुबन्द कंगन भल सोहे अँगुरिन नेपुर भाय ||

पहिरि बिजायठ हार जो सोहत, सिर बेन्दी मन लाये ||१ ||

करि सिंगार पलंगपर बैठी पिया पिया गोहराय ||

मैं बिरहिनि पिया बात न पूछत, तब जोबन जोर जनाय ||२ ||

चोलिया मसके बन्द सब टूटे अंग अंग थहराय ||

कामके बिरह सहा नहीं जातहो, गोरी सोचनमें तन छाय ||३ ||

पियपिय बोल पपिहरा बोलत सुनि सुनि धीर न आये ||

लालबिहारी धीर धरावत, गोरी धीर धरो मन माय ||४ ||


पीयवा परदेस में छाये सन्देस न आाये होली चौताल

पीयवा परदेस में छाये सन्देस न आाये ||

सुन्दर मास फगुनवा सजनी पियबिन मोहिं न भाये ||

पियपिय बोल पपिहरा बोलत, सुनि कामबिरह तनु छाये ||१ ||

बारे सैयां परदेस निकलगये नहिं कुछ खबर जनाये ||

नाग वो बाण बरस अब गुजरेहो,

मन अधिक उठत घबड़ाये ||२ ||

छाड़ि जनाना घर मरदाना पीयकर खोज कराये ||

धीर धरों जिय धीर न आवत, तहं योबन जोर जनाये ||३ ||

निसिदिन बैठी पिया दिस देखत अबहुं पिया नहीं आये ||

लालबिहारी बिरह बस कामिनि, पिय आइके बिरह छोरड़ाये ||४ ||


सखि आये बसंत बहार पिया नहिं आये होली चौताल

सखि आये बसंत बहार पिया नहिं आये ||

फागुन मस्त महीना सखिया मोर जिया ललचाये ||

सब नर नारी जो पागुन गावत,

सखि मोकहं सूम बढ़ाये ||१ ||

ताल मृदंग झांझ डफ बाजे सबको मन हरषाये ||

मैं बिरहिनि सेजियापर बिलखति,

मोहिं अजु मदन तनु छाये ||२ ||

भरभरके पिचकारी मारत नात गोत बिलगाये ||

सखि सब घर घर धूम मचावत,

तहां रंग अबिरन छाये ||३ ||

गोरी देत सभीको सबही ना कोइ काहु लजाये ||

लालबिहारी विरहबस बनिताहो, सोतो बैठे मनहि सुझाये ||४ ||


यह चरन सरोज तिहारे अमंगल हारे होली चौताल

यह चरन सरोज तिहारे,अमंगल हारे ||

अरे हे दशरथ के सुवन दयानिधि,दीनबन्धु हितकारे ||

कर धनु-सर सिर मुकुट बिराजत,

कलंगी बहुभाँति सँवारे ||अमंगल हारे ||

अरे कमल-नयन मुख-बयन सुधा-सम,

केसर तिलक लिलारे ||

कंठा-कंठ माल-मनि सोभित,

श्रुति-कुण्डल की द्युति न्यारे ||अमंगल हारे ||

अरे कल्प बिरिछ तर कनक सिंघासन,

तेहि पर आसन डारे ||

बाम भाग सीता सुठि सोभित,

करिके नव-सात सिंगारे ||अमंगल हारे ||

अरे भरत लखन रिपुदमन खडे़ धरि,

चँवर छत्र तरवारे ||

द्विज छोटकुन पंखा भल फेरत,

मारुत-सुत प्रान अधारे ||अमंगल हारे ||


बारहमासा झूमर होली बारहमासा

सखि का तकसीर हमारी, तजो बनवारी!

जेठ तपे तन अंग भावे नहिं सारी,
बाढ़े बिरह आषाढ़ देत आर्द्रा झनकारी!

सावन सेज भयावन लागत,
सखि प्रीतम बून्द कटारी!
(द्वितीय रूप- सखि भादो के बून्द कटारी)

भादो गगन गंभीर पीर अति हृदय मंझारी,
करि गए क्वार करार सवति संग फंसे मुरारी!

कातिक सीत अधिक संतावत,
सखि कोचत मोचत बारी!
(द्वितीय रूप)
कातिक रास रचें मनमोहन,
निज लोचन मुख निहारी!

अगहन अधिक सनेह विकल वृषभान दुलारी,
पूस पड़े तन जाड़ देत कुबजा को गारी!

माघ बसन्त हमें नहिं भावे,
पपिहा पिया टेर पुकारी!
(द्वितीय रूप)
आगे माघ बसन्त जनावत,
झूमर चऊताल धमारी!

फागुन उड़त गुलाल कुमकुम केसर डारी,
चइत फुले बन टेस पिया परदेस हमारी!

राम नवल बइसाख जनावत,
सखि नाथहिं मोहिं बिसारी!

(उलारा)

हम भईनी फकीर, तोहरे सुरति पर प्यारी!
अँखिया ह अमवाँ के फँकिया हो नकिया सुगा ठोड़ उड़ि जा नेबुल
नौरँगिया!
बिहँसे मुख मोर, बेदि बरनि नहीं जाए!
नाभि गजब गँभीर हरे सुरति पर प्यारी!


रघुबर यह नाम तिहारे होली चौताल

रघुबर यह नाम तिहारे, लगत जेहि प्यारे।।
ते नर नारि धन्य जग भीतर, जन्म सुफल करि डारे।
एक बेर कहत लहत फल पूरन,
पातक जरि जात पहारे।।लगत ………।।
यद्यपि नाम अनेक आपका, वेद पुरान पुकारे।
राम नाम सब शीश शिरोमनि,
जिमि चंद्र नक्षत्र मझारे।। लगत ………।।
नाशत अशुभ सकल सुखदायक, सब लायक हितकारे।
यहि कलि माँहि कल्पतरु के सम,
दुख दारिद द्वार पवारे।। लगत ………।।
यह जिय जानि मानि बुध संमत, व्यास आदि कवि भारे।
”द्विज छोटकुन” दिन रैन पुकारत,
जाचत नहिं और दुआरे।। लगत ………।।


SHARE: