कहैं बिप्र सुदामा कै नारी तोहरे श्रीकृष्ण व्यवहारी हरैं दुख भारी – होली गीत (चौताल लिखा हुआ)

कहैं बिप्र सुदामा कै नाऽऽऽरी !
तोहरे श्रीकृष्ण व्यवहारी ! हरैं दुख भाऽऽऽरी !२
हे परभुनाथ द्वारका जात्यो ।
मुरलीधर के दर्शन पवत्यो, आनन्दकन्द बिहाऽऽऽरी !२
मुटृठी भर जौ कै बहुरी भुजाय कै !२
धीरे धीरे चले जाते कँखरी दबाय कै !२
जहाँ द्वारपाल सरकाऽऽरी !
तहाँ पहुँचे हैं बिप्र मझाऽऽऽरी, हरै दुःख भाऽऽरी !२
सुनतै सुदामा नाव प्रभु धाए,
हथवा पकड़ि भितरा लैके जाए, जल लैके चरण पखाऽऽऽरे !२
मुट्ठी भर कखरी कै बहुरी चबाय के !
तुरतै कह्यो बिश्वकर्मा बुलाय के !
रच्यो जैसे बैकुण्ठ मँझाऽऽऽरी,
कोई महिमा ना जानै तुम्हारी, हरत दुःख भाऽऽऽरी !२
कुछ दिन बीते झूरै चले हैं सुदामा,
इहां आवन का रहा नाहिं कामा, पठयसि नारी – अनाऽऽऽरी !२
आनै का धन हमैं धनियां पठाई ! नाहीं कछु पावा,अवर बिलवाई !२
जहाँ द्वारपाल सरकाऽऽरी !
तहाँ पहुँचे हैं बिप्र मझाऽऽऽरी, हरै दुःख भाऽऽरी !२
आए सुदामा घरा लखैं जाइके,
हाथी औ घोड़ा देखैं सब जाइके , घर हूँ से आयन सपाऽऽरी !
गणपतिदास नारि पहिचाना ।
हथवा पकड़ि भितरा लै जाना ।।
धन दीन्ह भगत हितकाऽऽरी !
पिया सोवहु गोड़वा पसारी, हरत दुःख भाऽऽऽरी !२
लरिकइयाँ कै यार – लरिकइयाँ कै याऽऽर,
मोरे सुदामा घर आए !२
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