Laxmi Stotram Lyrics, लक्ष्मी स्तोत्रं लिरिक्स | श्री महालक्ष्मी अष्टक स्तोत्रं

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Laxmi Stotram Lyrics, लक्ष्मी स्तोत्रं लिरिक्स | श्री महालक्ष्मी अष्टक स्तोत्रं

Laxmi Stotram Lyrics, लक्ष्मी स्तोत्रं लिरिक्स
Laxmi Stotram Lyrics, लक्ष्मी स्तोत्रं लिरिक्स

यहाँ पढ़ें श्रीलक्ष्मी स्तोत्रम्

सिंहासनगत: शक्रस्सम्प्राप्य त्रिदिवं पुन: |
देवराज्ये स्थितो देवीं तुष्टावाब्जकरां तत: ||1||

इन्द्र उवाच

नमस्ये सर्वलोकानां जननीमब्जसम्भवाम्|
श्रियमुन्निद्रपद्माक्षीं विष्णुवक्ष:स्थलस्थिताम्||2||

पद्मालयां पद्मकरां पद्मपत्रनिभेक्षणाम्|
वन्दे पद्ममुखीं देवीं पद्मनाभप्रियामहम्||3||

त्वं सिद्धिस्त्वं स्वधा स्वाहा सुधा त्वं लोकपावनी |
सन्ध्या रात्रि: प्रभा भूतिर्मेधा श्रद्धा सरस्वती ||4||

यज्ञविद्या महाविद्या गुह्यविद्या च शोभने |
आत्मविद्या च देवि त्वं विमुक्तिफलदायिनी ||5||

आन्वीक्षिकी त्रयी वार्ता दण्डनीतिस्त्वमेव च |
सौम्यासौम्यैर्जगद्रूपैस्त्वयैत्तद्देवि पूरि

का त्वन्या त्वामृते देवि सर्वयज्ञमयं वपु: |
अध्यास्ते देवदेवस्य योगिचिन्त्यं गदाभृत: ||7||

त्वया देवि परित्यक्तं सकलं भुवनत्रयम्|
विनष्टप्रायमभवत्त्वयेदानीं समेधितम्||8||

दारा: पुत्रास्तथागारसुहृद्धान्यधनादिकम्|
भवत्येतन्महाभागे नित्यं त्वद्वीक्षणान्नृणाम्||9||

शरीरारोग्यमैश्वर्यमरिपक्षक्षय: सुखम् |
देवि त्वद्दृ्ष्टिदृष्टानां पुरुषाणां न दुर्लभम् ||10||

त्वं माता सर्वलोकानां देवदेवो हरि: पिता |
त्वयैतद्विष्णुना चाम्ब जगद्व्याप्तं चराचरम् ||11||

मा न: कोशं तथा गोष्ठं मा गृहं मा परिच्छदम् |
मा शरीरं कलत्रं च त्यजेथा: सर्वपावनि ||12||

मा पुत्रान्मा सुहृद्वर्गं मा पशून्मा विभूषणम् |
त्यजेथा मम देवस्य विष्णोर्वक्ष:स्थलालये ||13||

सत्त्वेन सत्यशौचाभ्यां तथा शीलादिभिर्गुणै: |
त्यज्यन्ते ते नरा: सद्य: सन्त्यक्ता ये त्वयामले ||14||

त्वया विलोकिता: सद्य: शीलाद्यैरखिलैर्गुणै: |
कुलैश्वर्यैश्च युज्यन्ते पुरुषा निर्गुणा अपि ||15||

स श्लाघ्य: स गुणी धन्य: स कुलीन: स बुद्धिमान्|
स शूर: स च विक्रान्तो यस्त्वया देवि वीक्षित: ||16||

सद्यो वैगुण्यमायान्ति शीलाद्या: सकला गुणा: |
पराड़्मुखी जगद्धात्री यस्य त्वं विष्णुवल्लभे ||17||

न ते वर्णयितुं शक्ता गुणांजिह्वापि वेधस: |
प्रसीद देवि पद्माक्षि मास्मांस्त्याक्षी: कदाचन ||18||

श्रीपराशर उवाच

एवं श्री: संस्तुता सम्यक् प्राह देवी शतक्रतुम् |
श्रृण्वतां सर्वदेवानां सर्वभूतस्थिता द्विज ||19||

परितुष्टास्मि देवेश स्तोत्रेणानेन ते हरे |
वरं वृणीष्व यस्त्विष्टो वरदाहं तवागता ||20||

इन्द्र उवाच

वरदा यदि मे देवि वरार्हो यदि वाप्यहम् |
त्रैलोक्यं न त्वया त्याज्यमेष मेsस्तु वर: पर: ||21||

स्तोत्रेण यस्तथैतेन त्वां स्तोष्यत्यब्धिसम्भवे |
स त्वया न परित्याज्यो द्वितीयोsस्तु वरो मम ||22||

श्रीरुवाच

त्रैलोक्यं त्रिदशश्रेष्ठ न सन्त्यक्ष्यामि वासव |
दत्तो वरो मया यस्ते स्तोत्राराधनतुष्टया ||23||

यश्च सायं तथा प्रात: स्तोत्रेणानेन मानव: |
मां स्तोष्यति न तस्याहं भविष्यामि पराड़्मुखी ||24||

||इति श्रीविष्णुमहापुराणे श्रीलक्ष्मी स्तोत्रं सम्पूर्णम्||


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