Surya Ashtakam Lyrics With Meaning | श्री सूर्याष्टकम लिरिक्स अर्थ सहित
इस Surya Ashtakam Lyrics With Meaning श्री सूर्याष्टकम लिरिक्स अर्थ सहित का प्रति रविवार सुबह जल्दी उठकर सनान के उपरांत पाठ किया जाए तो जल्दी फल मिलने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। पुराणों में इस पाठ को तुरंत फल देने वाला बताया गया है।
Surya Ashtakam Lyrics | श्री सूर्याष्टकम लिरिक्स
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर |
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते ||1||
भावार्थ: हे आदि देव भास्कर आपको प्रणाम है, आप मुझ पर प्रसन्न हों, हे दिवाकर आपको नमस्कार है, हे प्रभाकर आपको प्रणाम है |
सप्ताश्व रथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम् |
श्वेत पद्माधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ||2||
भावार्थ: सात घोड़ों वाले रथ पर आरुढ़, हाथ में श्वेत कमल धारण किये हुए, प्रचण्ड तेजस्वी कश्यपकुमार सूर्य को मैं प्रणाम करता हूँ |
लोहितं रथमारूढं सर्वलोक पितामहम् |
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ||3||
भावार्थ: लोहितवर्ण रथारुढ़ सर्वलोकपितामह महापापहारी सूर्य देव को मैं प्रणाम करता हूँ |
त्रैगुण्यश्च महाशूरं ब्रह्माविष्णु महेश्वरम् |
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ||4||
भावार्थ: जो त्रिगुणमय ब्रह्मा, विष्णु और शिवरूप हैं, उन महापापहारी महान वीर सूर्यदेव को मैं नमस्कार करता हूँ |
बृहितं तेजः पुञ्ज च वायु आकाशमेव च |
प्रभुत्वं सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ||5||
भावार्थ: जो बढ़े हुए तेज के पुंज हैं और वायु तथा आकाशस्वरुप हैं, उन समस्त लोकों के अधिपति सूर्य को मैं प्रणाम करता हूँ |
बन्धूकपुष्पसङ्काशं हारकुण्डलभूषितम् |
एकचक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ||6||
भावार्थ: जो दुपहरिया के पुष्प समान रक्तवर्ण और हार तथा कुण्डलों से विभूषित हैं, उन एक चक्रधारी सूर्यदेव को मैं प्रणाम करता हूँ |
तं सूर्यं लोककर्तारं महा तेजः प्रदीपनम् |
महापाप हरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ||7||
भावार्थ: महान तेज के प्रकाशक, जगत के कर्ता, महापापहारी उन सूर्य भगवान को मैं नमस्कार करता हूँ |
तं सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानप्रकाशमोक्षदम् |
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ||8||
भावार्थ: उन सूर्यदेव को, जो जगत के नायक हैं, ज्ञान, विज्ञान तथा मोक्ष को भी देते हैं, साथ ही जो बड़े-बड़े पापों को भी हर लेते हैं, मैं प्रणाम करता हूँ।
सूर्याष्टकं पठेन्नित्यं ग्रहपीडा प्रणाशनम् |
अपुत्रो लभते पुत्रं दारिद्रो धनवान् भवेत् ||9||
भावार्थ: इस सूर्याष्टकम के आठों श्लोको का जो नित्य प्रतिदिन पाठ करता है उसे पुत्र रत्न कि प्राप्ति होती है और घर धनधान्य से परिपूर्ण हो जाता है |
अमिषं मधुपानं च यः करोति रवेर्दिने |
सप्तजन्मभवेत् रोगि जन्मजन्म दरिद्रता ||10||
भावार्थ: यदि सूर्याष्टकम पाठ करने वाला मांस-मदिरापान करता है तो वह सात जन्मों तक रोगग्रष्त रहता है और जन्म-जन्मान्तर तक दरिद्रता का भोग करता है |
स्त्री-तैल-मधु-मांसानि ये त्यजन्ति रवेर्दिने |
न व्याधि शोक दारिद्र्यं सूर्य लोकं च गच्छति ||11||
भावार्थ: सूर्याष्टकम पाठ करने वाला स्त्री, तेल (सरसों) एवं मांस व मदिरा का परित्याग कर दे (ब्रम्ह्चर्ज व्रत का पालन करे) तो तमाम प्रकार के रोग और व्याधियां उसे कभी नहीं व्याप्त करती हैं और अंत में वह परम सूर्यलोक में निवास करता है |
विशेष:-
सूर्यदेव का यह पाठ आपकी ज़िंदगी में व्यवसाय या शिक्षा सम्बन्धी रुकावटों को दूर करते हैं।
अगर प्रति रविवार उनका सूर्याष्टकम का पाठ करें और दूध -मिश्री का भोग लगा कर पूजन करें तो तुरंत ही नौकरी लगने की संभावना होती है।
नीचे दिया गया पवित्र सूर्याष्टक का पाठ है जो अर्थ सहित है ।
इसका प्रति रविवार सुबह जल्दी उठकर सनान के उपरांत पाठ किया जाए तो जल्दी फल मिलने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। पुराणों में इस पाठ को तुरंत फल देने वाला बताया गया है।
Surya Ashtakam Lyrics ke Labh | सूर्याष्टकम के लाभ
इस सूर्याष्टकम के आठों श्लोको का जो नित्य प्रतिदिन पाठ करता है उसे पुत्र रत्न कि प्राप्ति होती है और घर धनधान्य से परिपूर्ण हो जाता है |
भगवान सूर्य की पूजा का उल्लेख वैदिक युग से किया गया है | सूर्य को ऋग्वेद में चल संपत्ति की आत्मा कहा गया है | सूर्य को सामाजिक प्रतिष्ठा, आत्म-सम्मान और कार्य आदि का कारक माना गया है।
कहा गया है कि सूर्य प्रकाश, ऊर्जा, गर्मी और जीवन शक्ति का ज्ञान प्रदान करता है | सूर्य की स्थिति वैदिक शास्त्रों में कुंडली में अत्यंत महत्वपूर्ण है | यदि कुंडली में सूर्य हर तरह से मजबूत है, तो व्यक्ति की हर समय समाज में प्रतिष्ठा रहेगी। ।
सूर्य का प्रभाव आंखों पर, सिर पर, दांत, नाक, कान, रक्तचाप, नाखून और हृदय पर पड़ता है | ये समस्याएं तब होती हैं जब कोई व्यक्ति सूर्य से अनभिग्य होता है, साथ ही जब सौर कुंडली में पहला, दूसरा, चौथा या आठवें घर में बैठता है | फिर व्यक्ति को शांति के लिए अपने उपचार के साथ एक सूर्य उपचार करना चाहिए |
यदि कोई रविवार को 11 बार सूर्य मंत्र का पाठ करता है, तो वह व्यक्ति प्रसिद्ध है | आप सभी कार्यों में सफल हैं |
सूर्याष्टकम पाठ करने वाला स्त्री, तेल (सरसों) एवं मांस व मदिरा का परित्याग कर दे (ब्रम्ह्चर्ज व्रत का पालन करे) तो तमाम प्रकार के रोग और व्याधियां उसे कभी नहीं व्याप्त करती हैं और अंत में वह परम सूर्यलोक में निवास करता है |